बालाघाट। मलेरियां हाई रिस्क जोन में जिले के 217 गांव
तीन माह में ही सामने आए एक सैकड़ा मरीज
बालाघाट। जिला स्वास्थ्य और मलेरियां विभाग से मच्छर जनित बीमारियों की रोकथाम हेतू विभिन्न जन जागरुकता के अभियान चलाए जा रहे हैं। बावजूद इसके अब भी लोगों में जागरूकता की कमी बनी हुई हैं। कारण यहीं है कि प्रतिवर्ष जिले में मच्छर जनित मलेरियां जैसी बीमारियों से बड़ी संख्या में लोग ग्रसित हो रहे हैं। खासकर जिले के आदिवासी अंचलों में यह बीमारी जड़ जमाएं हुए हैं।
विभागीय जानकारी के अनुसार जिले के 09 विकासखंडों में ऐसे 217 गांवों को चिन्हित किया है, जहां मच्छर जनित बीमारियों की अधिक संभावना बनी रहती है। ऐसे गांवों को मलेरियां हाई रिस्क गांव भी घोषित किए गए हैं, इन गांवो में वर्ष भर में कई बार स्वास्थ्य विभाग और एनजीओ के माध्यम से विभिन्न जागरूकता और स्वास्थ्य शिविरों के आयोजन भी किए जा रहे हैं।
दो लाख से अधिक जांच
मलेरियां विभाग के अधिकारियों की माने तो डेंगू, मलेरियां जैसी बीमारी की रोकथाम को लेकर शासन प्रशासन पूरी तरह से गंभीर है। तभी तो प्रतिवर्ष स्वास्थ्य विभाग को जनसंख्या के लिहाज से खून की जांच करने और बीमारी का पता लगाने का लक्ष्य दिया जाता है। एक औसत आंकड़ा माने तो प्रतिवर्ष करीब ढाई लाख लोगों के ब्लड सेंपल लेकर जांच की जाती है। इसमें डेंगू या मलेरियां पॉजीटिव मरीज आने पर मरीज जांच के साथ ही डेंगू, मलेरियां का लार्वा नष्ट करने भी प्रयास किए जाते हैं। पिछले पांच वर्ष के आंकड़े देखे तो स्वास्थ्य विभाग को वर्ष 2018 से 23 तक करीब 14 लाख 41 हजार 828 लोगों के ब्लड सेंपल लेने का लक्ष्य दिया गया। विभाग ने अपने जमींनी स्तर के अमले के साथ लक्ष्य से अधिक करीब 16 लाख 12 हजार 462 लोगों के ब्लड सेंपल लेकर जांच की। इनमें 5506 मरीज पॉजीटिव आने पर इनका सफल उपचार भी किया जा चुका है।
ट्रायबल क्षेत्र में अधिक संभावना
मलेरियां विभाग के अनुसार जिले के बैहर, बिरसा और परसवाड़ा तीन आदिवासी अंचल ऐसे हैं, जहां सर्वाधिक डेंगू व मलेरियां बीमारी होने की संभावना बनी रहती है। यहां के लोगों की दिनचर्या और सफाई व्यवस्था में ध्यान नहीं रखे जाने के कारण इन अंचलों से अधिक मरीज सामने आते हैं। समय समय पर इन क्षेत्रों में जन जागरूकता के अभियान चलाए जाते हैं।
मलेरियां ऐसे जानें
विशेषज्ञ चिकित्सकों की माने तो मलेरिया एक वेक्टर जनित रोग है, जो संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है। यह एक साधारण बुखार की तरह लग सकता है। लेकिन अगर इलाज न किया जाए तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रभाव पैदा कर सकता है। आम तौर पर मलेरिया का डोज समान रूप से वितरित नहीं होता है। उच्च आद्रता और नमी वाले क्षेत्रों में इसका उच्च प्रसार है जो मच्छरों के विकास को सुगम बनाता है।
इनका कहना है
अन्य जिलों की अपेक्षा में हमारे यहां मलेरियां को लेकर बेहतर स्थिति है। प्रतिवर्ष दिए जाने वाले लक्ष्य से अधिक जांच की जाती है। ट्रायवल क्षेत्रों में जन जागरूकता के आयोजन भी किए जाते हैं।
मनीषा जुनेजा, मलेरियां अधिकारी
मलेरियां विभाग को ब्लड सेंपल का लक्ष्य, की गई जांच व मलेरियां पॉजीटिव मरीजों के आंकडे-
वर्ष लक्ष्य जांच की पॉजीटिव
2018 252787 267108 0324
2019 256579 271754 0156
2020 228708 270656 2797
2021 231771 385525 0108
2022 234753 350144 1899
मार्च23 237530 067275 0222
योग- 1441828 1612462 5506
विखं वार मलेरियां हाई रिस्क जोन
विखं गांव
परसवाड़ा 25
बैहर 50
बिरसा 60
लांजी 17
किरनापुर 26
लामता 35
लालबर्रा 03
खैरलांजी 01
कुल योग- 217