बालाघाट। बैहर बिरसा क्षेत्र के बैगा आदिवासियों ने नगर में निकाली रैली, सौंपा ज्ञापन
बालाघाट। पिछले कई दशकों से वन भूमि पर कब्जा कर खेती कर रहे लोगो को जहा एक ओर शासन द्वारा वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टे आवंटित किए जाने का दावा किया जा रहा है, तो वही दूसरी ओर शासन के इस दावे की हकीकत कुछ और ही है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले अब भी ऐसे कई लोग हैं। जो कई वर्षों से वन भूमि पर कब्जा कर उसमें खेती कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उन्हें शासन द्वारा पट्टे आवंटित नहीं किए गए हैं जिसके चलते वे लोग पिछले कई वर्षों से कृषि भूमि का पट्टा प्रदान किए जाने की मांग कर रहे हैं। बावजूद इसके भी उन्हें अब तक कब्जे वाली भूमि का शासन द्वारा पट्टा आवंटित नहीं किया गया है। कब्जे वाली भूमि का पट्टा दिए जाने की मांग को लेकर मंगलवार को बैहर और बिरसा क्षेत्र के करीब 500 से 600 बैगा आदिवासियों ने नगर मुख्यालय पहुँचकर प्रदर्शन किया। जहां उन्होंने पट्टा दिए जाने की मांग को लेकर नगर के उत्कृष्ट विद्यालय मैदान से नगर में एक रैली निकाली, तो वहीं उन्होंने पट्टो की मांग को लेकर कलेक्टर कार्यालय में ज्ञापन सौंपकर अपना विरोध दर्ज किया।
हाथों में तख्ती लिए नगर में निकाली रैली
बैहर बिरसा क्षेत्र के करीब 10 गांव से पहुंचे बैगा आदिवासियों ने नगर के उत्कृष्ट विद्यालय मैदान से पट्टे की प्रमुख मांग को लेकर एक रैली निकाली। यह रैली उत्कृष्ट विद्यालय मैदान से सीधे हनुमान चौक पहुंची। वहां से यह रैली मेन रोड होते हुए विभिन्न चौक चौराहों का भ्रमण करते हुए सीधे कालीपुतली चौक, वहां से अंबेडकर चौक होते हुए सीधे कलेक्टर कार्यालय पहुंची। जहां इन बैंगा आदिवासी ग्रामीणों ने वनवासी विकास परिषद महाकौशल के बैनर तले पट्टे की प्रमुख मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा। जिन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए वे जल जंगल जमीन नहीं छोड़ेंगे और पट्टे की इस मांग को लेकर आंदोलन करते रहेंगे।
आदिवासियों को जमीन का लिया जाए पट्टा - लखन मरावी
ज्ञापन सौंपने के दौरान वनवासी विकास परिषद के कार्यकर्ता लखन मरावी ने बताया कि बैहर बिरसा तहसील के विभिन्न ग्रामों से लोग आए हैं वन अधिकार पट्टे की मांग को लेकर। वन अधिकार अधिनियम 2006 कानून बना, उस कानून में यह प्रावधान है 13 दिसंबर 2005 के पूर्व से जिस जमीन पर कार्य करते आ रहे हैं उस जमीन पर आदिवासियों को पट्टा दिया जाए। यह कानून बना लेकिन शासन प्रशासन की नाकामी के कारण जनजाति समाज को अपने हक अधिकार के लिए जिला मुख्यालय लाना पड़ा। सभी के द्वारा वन अधिकार पट्टा दिए जाने की मांग पुरजोर तरीके से की जा रही है।