बालाघाट। सेवाभाव का प्रतीक होता है डॉक्टर
बालाघाट। एक इंसान के जीवन की शुरुआत से लेकर उसकी सुरक्षा के लिए हर पड़ाव पर एक डॉक्टर उसके साथ होता है। बच्चा जब जन्म लेता है तो डॉक्टर ही हैं जो मां के गर्भ से शिशु को दुनिया में लाते हैं। उसके बाद शिशु को रोगों से बचाने और सेहतमंद रखने के लिए जरूरी सभी जानकारी और वैक्सीनेशन आदि भी डॉक्टर की जिम्मेदारी होती है। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसके शरीर में बदलाव शुरू होते हैं। इन सब बदलावों, समाज व लाइफस्टाइल का असर इंसान के स्वास्थ्य पर पड़ता है। एक डॉक्टर ही शारीरिक, मानसिक तकलीफ से ग्रसित इंसान के सभी दर्द और रोगों का निवारण करता है। इसलिए भारत में डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है। डॉक्टरों के इसी सेवा भाव, जीवन रक्षा के लिए किए जा रहे प्रयत्नों और उनके काम को सम्मान देने के लिए हर साल जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। ये दिन डॉक्टरों को धन्यवाद देने का होता है। हर साल 1 जुलाई डॉक्टर्स डे यानी राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग, जिनका जीवन किसी न किसी डॉक्टर से जुड़ा हो, वह चिकित्सक को धन्यवाद करते हैं। एक शिशु के तौर पर उन्हें इस दुनिया में लाने के लिए और उन्हें सेहतमंद रखने के लिए डॉक्टर के प्रयासों के लिए उनका आभार जताया जाता है।
भारत में पहली बार राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाने की शुरुआत साल 1991 से हुई थी। इस साल केंद्र सरकार ने पहली बार डॉक्टर डे मनाया था। इस दिन को मनाने की शुरुआत एक डॉक्टर की याद में हुई थी। उनका नाम डॉ बिधान चंद्र रॉय था। दरअसल डॉ बिधान चंद्र राय बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। वह एक चिकित्सक भी थे, जिनका चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान था। डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय ने जादवपुर टीबी मेडिकल संस्थान की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह भारत के उपमहाद्वीप में पहले चिकित्सा सलाहकार के तौर पर प्रसिद्ध हुए। 4 फरवरी, 1961 को डॉ बिधान चंद्र रॉय को भारत रत्न के सम्मान से भी नवाजा गया। उन्होंने मानवता की सेवा में अभूतपूर्व योगदान को मान्यता देने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस को मनाने की शुरुआत की।