बालाघाट। कार्तिक पूर्णिमा की रात 37 घी के दीपक जलने के साथ शुरू होगा श्रीराम बालाजी मेला
14 वर्षों के वनवास के समय आए थे श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता
बालाघाट। जिले के वारासिवनी जनपद में वारासिवनी से महाराष्ट्र मार्ग पर स्थित रामपायली विद्यमान है। यहां का चंदन नदी किनारे प्रसिद्ध श्रीराम बालाजी मंदिर भगवान श्रीराम के वनगमन की कई ऐतिहासिक धरोहरों और मान्यतों को समेटे हुए हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के समय इस नगरी में पधारे थे। तब से इस नगरी का नाम राम पदावली अर्थात् रामपायली हो गया। यहां प्रभु श्रीराम के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं।देश के नक्शे में भी यह ऐतिहासिक मंदिर अपनी अलग पहचान बना रहा है। नदी किनारे कार्तिक पूर्णिमा 26 नवंबर से चंदन नदी किनारे श्रीराम बालाजी मंदिर में 37 घी के दीपक यानि टिपुर जलने के साथ दस दिवसीय मेला प्रारंभ होगा।
मंदिर पुजारी विशंकर दास वैष्णव ने बताया कि मंदिर के पास कार्तिक मास की पूर्णिमा में प्रतिवर्ष जनपद स्तर से सात दिनों का भव्य मेला लगता है। इस साल आचार संहिता होने के चलते परंपरा को बनाए रखने श्रीराम सेवा समिति द्वारा दस दिवसीय मेले का आयोजन 26 नवंबर से किया जा रहा है। ऐतिहासिक मंदिर होने से यहां पर भक्तों का आना जाना रोज लगा रहता है। पूर्णिमा की रात्रि को भगवान बालाजी की शुद्ध घी से कच्चे धागे की बाती से 37 टिपुर रात्रि नौ बजे रखे जाएंगे। यहां पर दूर-दूर के लाखों दर्शनार्थी आते हैं और लुफ्त उठाते है। मंदिर में जिले के अलावा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ राज्य सहित अन्य राज्यों के भक्तगण मेले में पहुंचते है। श्रीराम मंदिर का निर्माण करीब 600 वर्ष पूर्व भंडारा जिले के तत्कालीन मराठा भोषले ने नदी किनारे एक किले के रुप में वैज्ञानिक ढंग से कराया था। मंदिर में ऐसे झरोखों का निर्माण है जिससे सूर्योदय के समय सूरज की पहली किरण भगवान श्रीराम बालाजी के चरणों में पड़ती है। भारत के प्राचीन इतिहास में इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। यहां के लोगों का मानना है कि मंदिर इतना सिद्ध स्थल है कि स्वयं भगवान सूर्यदेव भी उदय होने पर सबसे पहले प्रभु श्रीराम के चरण स्पर्श करते हैं।
मूर्तियों में प्रत्यक्ष दर्शन
श्रीराम मंदिर में प्रमुख सिद्ध मूर्ति बालाजी एवं सीताजी की है। भगवान राम की मूर्ति वनवासी रुप में है। सिर पर जूट और वामांग में सीता का भयभीत संकुचित स्वरुप है। राम भगवान का बायां हाथ विराध राक्षक को देखकर भयभीत सीता के सिर पर उन्हें अभय देते हुए हैं जो भक्तों को भगवान राम और सीता के प्रत्यक्ष दर्शन कराते हैं।
स्वप्न में दिखी मूर्ति
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार भगवान राम की वनवासी वेशभूषा वाली यह प्रतिमा करीब चार सौ वर्ष पूर्व चंदन नदी के ढोह से किसी व्यक्ति को स्वप्न में दिखाई देने से प्राप्त हुई थी। मूर्ति को निकालकर नदी की टेकरी पर नीम के वृक्ष के नीचे टिका दिया गया और राजा भोषले ने मंदिर का जीर्णोंद्वार कर मूर्ति की स्थापना की। वर्ष 1877 में तत्कालीन तहसीलदार स्वर्गीय शिवराज सिंह चौहान ने मंदिर का जीर्णोंद्वार कराया। यह भूमि दशरु पटेल से गांव खरीदकर रामचंद्र स्वामी देवास्थान ट्रस्ट की स्थापना की गई।
लगंडे हनुमान जी
पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्व मुखी लंगड़े हनुमान जी की मूर्ति का एक पांव जमीन और दूसरा पांव जमीन के अंदर होने से स्पष्ट दिखाई नहीं देता है। वर्षों पूर्व एक समिति ने हनुमान जी की मूर्ति हटाकर मंदिर में स्थापित करने की कोशिश की थी। तब करीब पचास फीट से अधिक का गड्ढा खोदा गया, लेकिन पांव का दूसरों छोर नहीं मिल सका। तब हनुमान जी ने स्वप्न में आकर बताया कि मूर्ति नदी किनारे ही रहने दो यदि मंदिर ही बनवाना है तो मूर्ति के पास बनवाओं। मान्यता है कि हनुमान जी का एक पांव पातल लोक तक गया है। यहां पहुंचने वाले भक्त इन मूर्तियों की कहानियां सुनकर भक्ति भाव से ओत प्रोत हो जाते हैं।
स्वयं प्रगट शिवलिंग
इसी प्रकार लोगों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाली शिवलिंग के दर्शन करने भी दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग स्वयं प्रगट हुई है। हजारों वर्ष पूर्व एक बुढिया के आंगन में रेत की शिवलिंग बनती थी, लेकिन बुढि़या उसे कचरा समझकर झाड़ दिया करती थी। कई बार झाड़ने के बाद भी शिवलिंग नहीं हटी और स्थापित हो गई। यह शिविलिंग अब बालू के शिवलिंग के नाम से प्रख्यात है।
ऐसे पहुंचे पर्यटक और श्रद्धालु
पर्यटन जिला प्रबंधक ने बताया कि श्रीराम बालाजी मंदिर तक पहुंचने पहले काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब सभी तरह के संसाधन उपलब्ध है। दिल्ली और मुंबई से पहुंचने वाले सैलानी गोंदिया, नागपुर महाराष्ट्र तक हवाई यात्रा से पहुंचते हैं। गोंदिया तक हवाई यात्रा या फिर ट्रेन के माध्यम से वारासिवनी या बालाघाट पहुंचा जा सकता है। मुख्यालय पहुंचने पर निजी यात्री बसें रोज रामपायली आवागमन करती है। रामपायली बस स्टैंड से कुछ मीटर दूरी पर ही श्रीराम बालाजी का भव्य मंदिर स्थापित है। वहीं कई ट्रेवल एजेंसियों से संपर्क कर भी रामपायली देवस्थान के साथ जिले के अन्य पर्यटक स्थलों का भ्रमण किया जा सकता है।
इनका कहना है
कार्तिक पूर्णिमा की रात नौ बजे से मंदिर परिसर में टिपुर यानि घी के 37 दीपक जलाए जाएंगे। इस साल नदी किनारे दस दिवसीय भव्य मेला श्रीराम सेवा समिति व ग्रामीणों के सहयोग से भरेगा। मेले में भक्तगण कढ़ई करने परिवार के साथ आते है।
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