बालाघाट। अंग्रेजों के शासन काल के दौरान बालाघाट मध्यप्रदेश में नहीं बल्कि महाराष्ट्र के भंडारा जिले में शामिल था। इस दौरान यहां के इतिहासिक व धार्मिक महत्व के स्थल व प्रतिमाओं को सहेजने के लिए संग्रहालय न होने के कारण बहुत सारी इतिहासिक व धार्मिक महत्व की सामग्री को नागपुर के संग्रहालय में रखा गया। जिससे इनकों बालाघाट में संरक्षित नहीं किया जा सका है। बता दें कि अंग्रेजी शासनकाल के बाद 1956 में बालाघाट महाराष्ट्र के बजाय मध्यप्रदेश का हिस्सा बना जिसका नुकसान बालाघाट को धार्मिक व इतिहासिक महत्व की सामग्रियों को खोकर उठाना पड़ा है।
बालाघाट में मिला था गुप्तकालीन इतिहास का ताम्रपत्र, मुगलकाली आहत सिक्के
अंग्रेजों के शासक काल के दौरान बालाघाट जिले में छठवीं शताब्दी के गुप्तकालीन इतिहास को पुख्ता करने वाले ताम्रपत्र सालेटेकरी के रंगोली में मिले थे। इतना ही नहीं दसवीं शताब्दी के लांजी किले की भगवान शिवपार्वती की प्रतिमा भी सामने आई थी। जिन्हें अंग्रेजो ने नागपुर संग्रहालय में रखवा दिया था। वहीं मुगलकालीन आह सिक्के जो कि क्षतिग्रस्त हो चुके थे जिसके चलते ही इन्हें आहत नाम दिया गया था जो कि कटंगी सिवनी रोड पर पडऩे वाले घंघरिया में मिले थे इन्हें भी नागपुर संग्रहालय में रखा गया जिसके चलते ही इन्हें बालाघाट के संग्रहालय में नहीं रखा जा सका और इससे बालाघाट वासी भी अंजान है।
संग्रहालय के 1980 से शुरु हुआ प्रयास 1988 में हुआ सार्थक
बालाघाट जिले चारों तरफ बिखरी पड़ी इतिहासिक व धार्मिक महत्व की धरोहर को सहेजने के लिए संग्रहालय बनाने का प्रयास सन 1980 में शुरु किया गया जिसे 1988 में अस्थाई रुप से सफलता मिली और सन 1991 में बालाघाट मुख्यालय में संग्रहालय का संचालन शुरु किया गया। करीब 50 इतिहासिक महत्व की प्रतिमाएं समेत अन्य सामग्रियों से शुरु किए गए इस संग्रहालय में वर्तमान समय में 110 से अधिक धरोहर को लाया गया है। वहीं 300 से अधिक धरोहर को चिन्हित किया गया है। जिन्हें लाने के लिए प्रयास संग्रहालय के द्वारा किया जा रहा है। लांजी किले में बना संग्रहालय, बैहर में बनाने की तैयारी बिखरी पड़ी धरोहर को सहेजने के लिए बालाघाट संग्रहालय में जहां दसवीं शताब्दी से लेकर 16 वीं शताब्दी तक की धरोहर को सहेज कर रखा गया है। वहीं अन्य स्थानों की धरोहर को सहेजने के लिए लांजी किला में एक संग्रहालय बनाया गया हालांकि इसके शुरु अब तक नहीं किया गया है। वहीं बैहर में भी एक संग्रहालय को बनाने की कार्रवाई की जा रही है। बता दें कि बालाघाट संग्रहालय में मुगलकालीन सिक्कों के साथ ही गुप्तकालीन भगवान नरसिंह की फोटो है। साथ ही अन्य धरोहर को भी सहेज कर रखा गया है।
नैरोगेज की बोगी स्थापित करने वाला पहला संग्रहालय बालाघाट
नैरोगेज की बोगी स्थापित करने वाला पहला संग्रहालय बालाघाट जिले का संग्रहालय इतिहासि व धार्मिक धरोहर को सहेजने के साथ ही एकलौता ऐसा संग्रहालय है, जहां पर बोगी को स्थापित किया गया है। बालाघाट से जबलपुर के बीच जब नैरोगेज ट्रेन चलती थी तो सतपुड़ा एक्सप्रेस बहुत ही प्रसिद्ध थी लेकिन इसके बंद हो जाने पर जिलेवासियों की याद में ट्रेन हमेशा ही रहे इसके लिए इसकी एक बोगी को तत्कालीन कलेक्टर भरत यादव के कार्यकाल में स्थापित किया गया है।
इनका कहना है
बालाघाट में छठवीं, सातवीं शताब्दी के भी इतिहासिक महत्व के प्रमाण मिले है। जिनमे से कई को नागपुर संग्रहालय में रखा गया है। जिन्हें लाया नहीं जा सका है। 1991 में पूर्ण रुप से संग्रहालय का संचालन किए जाने के बाद से अब तक 110 इतिहासिक व धार्मिक धरोहर को संग्रहालय में लाकर सहेजा गया है। वहीं वर्तमान समय में 300 से अधिक बिखरी पड़ी धरोहर को चिन्हित किया गया।
डा. वीरेन्द्र सिंह गहरवार, अध्यक्ष इतिहास व पुरातत्व संग्रहालय