बालाघाट। सरकारी जमींन से बैगाओं को हटाकर कर्मचारियों ने जमाया कब्जा
भरी ठंड में बेघर हुए आदिवासी, जगह दिलाकर पट्टा जारी किए जाने की मांग
बालाघाट। सरकारी जमींन पर झोपड़ी बनाकर गुजर बसर कर रहे बैगा परिवारों को वन विभाग ने बेदखल कर दिया, वहीं उसी जमींन पर वन विभाग के ही स्थाई कर्मचारियों ने कब्जा जमा लिया है। यह आरोप बैगा आदिवासी परिवारों ने वन कर्मचारियों पर लगाए हैं। मामला बैहर जनपद क्षेत्र अंतर्गत उकवा के समीप के ग्राम पोंडी के बैगा कॉलोनी से सामने आया है। आदिवासी बैगा बुधराम पिता झाम सिंह मरावी, सुंदर पिता झामसिंह मेरावी और राजकुमार बैगा ने बताया कि वे पिछले माह से कंचन टोला एवं पोंडी में खाली पड़ी जमीन पर झोपड़ी बनाकर किसी तरह से गुजर बसर कर रहे थे। लेकिन वन विकास निगम लामता प्रोजेक्ट के चौकीदारों ने वहां से उन्हें हटाकर बेघर कर दिया है। वहीं निगम के ही एक स्थाई कर्मचारी ने सरकारी जमीन पर कब्जा जमा लिया है।
इन बैगा परिवारों ने बताया कि उनके पास सिर छिपाने घर नहीं है। इस कारण ही वे किसी तरह झोपड़ी बनाकर रह रहे थे। लेकिन उन्हें बेदखल कर दिया है। ऐसे में परिवार सहित गुजर-बसर की गंभीर समस्या उनके समक्ष खड़ी हो गई है।
नहीं मिला आवास योजना का लाभ
इन आदिवासी परिवारों ने बताया कि वैसे तो शासन ने बेघरों को पक्का मुहैया कराने प्रधानमंत्री आवास योजना लागू कर रखी है। वहीं जिन परिवारों के पास स्वयं की जमीन नहीं है उन्हें जमीन अलाट कर पट्टा भी दिया जा रहा है। लेकिन उन्हें अब तक इस योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। वर्तमान में उनके पास कोई प्लाट या जमीन नहीं है। इस कारण ही वे सरकारी जमीन पर कब्जा जमाकर रह रहे थे। उन्हें उम्मींद थी कि शासन उन्हें सरकारी जमीन पर पट्टा देकर आवास योजना का लाभ देगी। लेकिन उन्हें उस जमीन से हटाकर उनके झोपड़े तुड़वा दिए गए है।
ठंड बढऩे से बढ़ी परेशानी
इन बैगा परिवारों के मुखियाओं ने बताया कि उनके परिवार में महिलाएं और बच्चे भी है। ऐसे में मानवता का परिचय देकर खासकर ठंड के मौसम तक उन्हें रहने दिया जाना चाहिए था। लेकिन निर्दयी बने वन कर्मचारियों ने बिना कोई सूचना के उन्हे सख्ती बरतकर हटवा दिया है। ऐसे में भरी ठंड में वे बेघर हो गए हैं। उनके सामने ठंड में सिर छिपाने की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है। किसी तरह वे आस पास के गांव के समीप ही बिना छत के रात काट रहे हैं।
कर्मचारी ने किया कब्जा
बैगाओं ने बताया कि जिस जमीन से उन्हे हटाया गया है। वहां समीप ही एक वन विकास निगम के स्थाई कर्मचारी ने करीब एक एकड़ जमीन खरीदी है। लेकिन फैसिंग एक एकड़ से अधिक रकबे में कर सरकारी जमीन पर कब्जा जमा लिया है। इस ओर वरिष्ठ अधिकारी भी ध्यान नहीं दे रहे है। गरीब आदिवासियो को तो डरा धमकाकर उन्हें हटा दिया गया है। लेकिन स्वय के विभाग के कर्मचारियों को अतिक्रमण मौन संरक्षण प्रदान किया जा रहा है।
इनका कहना है
सरकारी जमीन पर किसी तरह से झोपड़ी बनाकर रह रहे थे। लेकिन वन कर्मचारियों ने डरा धमका कर वहां से हटा दिया है। अब करवाही में आकर रह रहे हैं।
ललिता पति बलवंत बैगा, पीड़ित
पोंडी की सरकारी जमीन पर चार बैगा परिवारों ने झोपड़ी बनाकर रह रहे थे। लेकिन हमें हटा दिया गया है। भरी ठंड में परिवार के साथ गुजर बसर करने की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है।
बुधराम झामसिंह, पीड़ित
वन विभाग ने बैगाओ को तो सरकारी जमीन से हटावा दिया। जबकि वन कर्मचारी भी सरकारी जमीन पर फैसिंग लगाकर कब्जा किए है। उन्हें कोई नहीं हटा रहा है।
राजकुमार बैगा, पीड़ित
आपके माध्यम से जानकारी मिल रही है। सरकारी वन विभाग की जमीन पर किसी तरह का कोई कब्जा नहीं किया जा सकता चाहे व विभागीय कर्मचारी ही क्यो न हो। हम मामले को दिखवाते हैं।
अजय कांबले, डिप्टी रेंजर