मालिकाना हक की जमींन छीन सरकारी जमींन पर जबरन दिया जा रहा कब्जा
कहां दूसरे किसान को लाभ पहुंचाने नियम कायदों को किया जा रहा दरकिनार
एसडीएम और कलेक्टर को शिकायत कर मामले की जांच कर न्याय दिलाने की लगाई गुहार
बालाघाट। दूसरे किसान को लाभ पहुंचाने राजस्व अमले ने सारे नियम कायदों को ताक पर रख दिया। वहीं मालिकाना हक की जमींन दूसरे किसान को दे दी गई। जब पीड़ित महिला किसान ने शिकायत की तब उसकी मालिकाना हक की जमींन के बदले उसे जबरन नजूल की शासकीय मद की भूमि पर कब्जा दिलाया जा रहा है। यह आरोप खैरलांजी जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत सावरी से सामने आया है। यहां की वृद्ध महिला किसान सीलवंता पति उदेलाल ने राजस्व अमले पर मिलीभगत कर गलत सीमांकन करने और नियम विरूद्ध सरकारी जमींन पर कब्जा दिलवाए जाने का आरोप लगाया है। पूरे मामले की शिकायत एसडीएम और कलेक्टर से कर बारीकी से जांच कर मामले का पटाक्षेप और न्याय दिलाए जाने की मांग की गई है।
यह है पूरा मामला
सीलवंता के अनुसार वह व उसके पति शिक्षित नहीं है। उन्होंने वर्ष 2008 में 1 एकड़ भूमि खसरा नंबर 771/3/2 और 2010 एक एकड़ भूमि खसरा नंबर 771/3/5 अपनी खून पसीने की कमाई से किसी रेणुका लिल्हारे व अन्य से क्रय कर बकायदा रजिस्ट्री कर मालिकाना हक प्राप्त किया है। तब से उक्त भूमि पर सीलवंता व उसका परिवार खेती किसानी करते आ रहा है। लेकिन अचानक अब उनका पड़ोसी किसान पूरनलाल माहुले उनकी जमींन को स्वयं की बता रहा है जिसका कहना है कि उसकी खसरा नंबर 771/3/3 की 1 एकड़ जमींन पर सीलवंता ने कब्जा कर रखा है।
मिलीभगत के लगाए आरोप
सीलवंता के अनुसार उन्होंने कभी पूरनलाल की जमींन पर कब्जा नहीं किया है, लेकिन पूरनलाल की शिकायत पर राजस्व अमले ने सीमांकन कर उनके मालिकाना हक की जमींन खसरा नंबर 771/3/5 व 771/3/2 में से एक एकड़ जमींन पूरनलाल माहुले को दे दी है। अब सीलवंता की कम हुई जमींन की पूर्ती करने राजस्व अमला शासकीय मद की भूमि पर उन्हें कब्जा करने कह रहा है जो कि अनुचित है। ऐसे में सीलवंता की मांग है कि अंतिम जांच व निर्णय होने तक कब्जे पर रोक लगाई जाए।
वृद्धा किसान ने उठाए सवाल
सीलवंता के अनुसार खसरा नंबर 283/1 की जमींन की पूर्ति उनकी मालिकाना हक की जमींन ख. नं 771/3/2 से की गई है, जबकि यह जमींन पूरनलाल के नक्शे से बाहर की है। वहीं सीलवंता का कहना है कि यदि पूरनलाल सहीं है और उसे कब्जा भी दिला दिया गया है, तो फिर भूमि रिकार्ड में सुधार क्यों नहीं दिखाया जा रहा है। बढ़ी हुई जमींन अब पूरनलाल के नक्शे में बढकऱ क्यों नहीं दिखाई जा रही है। वहीं सीलवंता की जमींन के दस्तावेजों में से ही एक एकड़ जमींन कम दर्शाई जानी चाहिए। लेकिन उसके दस्तावेज में भी कोई संशोधन नहीं दर्शाया जा रहा है। पूरे मामले में कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। राजस्व अमले ने भौतिक रूप से पूरनलाल को लाभ तो पहुंचा दिया, लेकिन सरकारी रिकार्ड में कोई परिवर्तन नहीं किया जा रहा है।
आबादी मद की जा रही पूर्ति
सीलवंता के अनुसार उसकी जमींन पूरनलाल को दिलवाने के बाद अब राजस्व अमला उसकी घटी जमींन की पूर्ती शासकीय मद की भूमि से करने में लगा हुआ है। यह पूर्ति भी किस नियम के आधार पर की जा रही है उसकी समझ से परे हैं। सीलवंता के अनुसार उसे जबरन सरकारी जमींन दी जा रही है जो उसे नहीं चाहिए। उसके मालिकाना कह की जमींन ही उसे दिलवाई जाए।
इनका कहना है
हमारे अशिक्षित होने का पूरा फायदा पूरनलाल और राजस्व अमला उठा रहा है। मिलीभगत कर हमारी जमींन पूरनलाल को दिलवाई जा रही है। वहीं हमें जबरन सरकारी जमींन पर कब्जा करने कहा जा रहा है यह सरासर गलत है। वरिष्ठ अधिकारियों को हस्तक्षेप कर राजस्व अमले की मनमानी पर रोक लगानी चाहिए। हमें न्याय दिलाया जाना चाहिए।
सीलवंता उदेलाल, पीड़ित किसान
सीमांकन हो गया है और दोनों को कब्जा भी दिला दिए है। 3 लोगों की टीम गठित की गई थी। 6.50 एकड़ जमींन पाई गई थी, जिसमें से एक एकड़ जमींन निकाली गई है। आवेदिका द्वारा लगाए गए सारे आरोप निराधार है।
योगेश उइके, हल्का पटवारी सावरी