कटंगी। मध्य प्रदेश में 16वीं विधानसभा के लिए आगामी 17 नवंबर को मतदान होना है. सियासी पारा आसमान पर चढ़ा हुआ है जैसे-जैसे चुनाव के मतदान की तारीख नजदीक आ रही है वैसे-वैसे राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारक और तमाम बड़े नेताओं की सभाओं की तैयारी भी शुरू कर दी गई है। यहां विधानसभा क्षेत्र कटंगी-खैरलांजी में इस बार होने वाले चुनाव में 10 प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं। किसी ने भी अपना नाम निर्देशन पत्र वापस नहीं लिया। चुनाव में पिता पुत्र की जोड़ी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में है। बता दें कि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़ेग और पूर्व सीएम कमलनाथ की सभा के साथ चुनावी शंखनाद कर रही है। यहां विधानसभा क्षेत्र कटंगी-खैरलांजी में इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। दरअसल, प्रमुख राजनीतिक दल से अधिकृत प्रत्याशियों का उन्हीं के पार्टी के कुछेक लोगों के द्वारा बाहरी बताकर शुरू से ही विरोध हो रहा है। पार्टी के वरिष्ट नेताओं के समझाइस के बाद यह विरोध ऊपरी तौर पर तो थम गया ऐसा दिखाया जा रहा है। मगर, इन दलों में अंदरूनी कलह जारी है और दूसरी तरह क्षेत्रीय व्यक्ति को ही विधायक बनाने का राग अलापा जा रहा है।
प्रत्याशियों पर लगा दांव, निर्दलीय भी आजमा रहे किस्मत
     विधानसभा क्षेत्र कटंगी-खैरलांजी में 02 लाख 2457 मतदाता अपने मत का उपयोग कर अपना नेता चुनेंगे। इसमें महिला मतदाताओं की भागीदारी अधिक है। महिला मतदाताओं की संख्या 01 लाख 1863 है वहीं पुरुष मतदाताओं की संख्या 01 लाख 593 है। इस बार का चुनाव कई मायनों में अहम है। इस चुनाव से नये राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी होने वाली है और समाप्त भी। राजनीतिक परिदृश्य और जीत-हार की तैयारी और प्रत्याशी चयन को लेकर शुरू से ही राजनीतिक दलों में जमकर मंथन हुआ और प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया गया। कांग्रेस पार्टी ने 05 साल पहले भाजपा छोड़ चुके और कुछ समय पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सांसद बोधसिंह भगत पर दाव लगाया है। वहीं भाजपा ने गौरव पारधी को चुनाव मैदान में उतारा है। बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर से उदय सिंह पंचेश्वर और समाजवादी पार्टी ने महेश सहारे को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं आम आदमी पार्टी ने कुछ दिन पहले ही पार्टी में शामिल हुए प्रशांत भाऊ मेश्राम को अपना प्रत्याशी बनाया है। इस बार बहुजन मुक्ति पार्टी की भी कटंगी-खैरलांजी विधानसभा में एंट्री हुई है। पार्टी ने सदाशिव हरिनखेडे को उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। इन सबके अलावा तीसरी बार की जिला पंचायत सदस्य केसर बिसेन जो प्रत्याशी का नाम का ऐलान होने के पहले तक कांग्रेस के साथ खड़ी रही उन्होंने टिकट नहीं मिलने पर बगावत करते हुए निर्दलीय नामांकन दाखिल किया है। निर्दलीय प्रत्याशियों में भोनेंद्र डहरवाल और पिता पुत्र की जोड़ी भी शामिल है। पिता मूलकराज आनंद और पुत्र भारत आनंद भी चुनावी रण में एक साथ कुद पड़े है। गुरुवार को भारत आनंद अपना नामांकन वापस लेने वाले थे ऐसी चर्चाएं थी लेकिन नाम निर्देशन पत्र वापस लेने की तारीख को वह निर्वाचन कार्यालय नहीं आए हालांकि उनके प्रस्ताव के द्वारा नामांकन फार्म वापस लेने की निर्वाचन अधिकारी के समक्ष इच्छा जाहिर की गई परंतु निर्वाचन अधिकारी ने प्रत्याशी को उपस्थित होने के लिए कहा जिसके चलते नामांकन फॉर्म वापस नहीं हो पाया।
चर्चाओं का बाजार गर्म जीत किसकी
विधानसभा चुनाव में जीत किसकी होगी इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। शहर से लेकर गांव के चौक-चौराहों पर राजनीतिक चर्चाएं हो रही है। प्रत्याशियों के जीत हार का सभी अपनी-अपनी तरह से आंकलन कर रहे है। खासतौर से प्रत्याशियों के समर्थकों ने अपनी आंखों में जीत का चश्मा लगा रखा है। पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी अपनी जीत को लेकर सुनिश्चित तो दिख रहे है लेकिन उनके भीतर जो डर बना हुआ है उसे बयां नहीं कर पा रहे है। दरअसल, मौजूदा वक्त में मतदाता पूरी तरह से खामोश है केवल समर्थक ही जीत का दावा कर रहे है। वह भी तब जब विधानसभा क्षेत्र कटंगी-खैरलांजी का करीब 50 हजार मतदाता बाहर है। हालांकि यह मतदाता चुनाव से पहले दीपावली पर्व मनाने के लिए अपने घर लौटेंगे और मतदान करने के बाद ही वापस जाएगा। पलायन करने वाला यह मतदाता जब अपने घर लौटेंगे तो यही जीत हार का गणित तय करेगा। इसलिए अभी से किसी की जीत-हार का शुरूआती आंकलन भी समझ नहीं आ रहा है।
विकास नहीं बल्कि जाति आधारित चुनाव
विधानसभा क्षेत्र कटंगी-खैरलांजी में वैसे तो चुनाव में विकास के बड़े-बड़े दावे और वादे किए जाते है लेकिन इस क्षेत्र में कभी भी चुनाव विकास के मुद्दे को लेकर नहीं लड़ा जाता। पार्टी का हो या फिर निर्दलीय प्रत्याशी वह मतदाताओं को विकास के केवल सपने दिखाता है। असल बात तो यह है कि कटंगी-खैरलांजी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव जातीय समीकरण के आधार पर जीते जाते है। करीब 03 दशक से राजनीति एक ही जाति के ईद-गिर्द घूम रही है। हालांकि इस बार जातीय समीकरण के साथ स्थानीय और बाहरी भी एक मुद्दा है। चूंकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने वारासिवनी क्षेत्र के गांवों में निवास करने वाले व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाया है अब इसी को लेकर निर्दलीय प्रत्याशी अपनी जीत को लेकर दावे कर रहे है। खैर, मतदाता ही इन प्रत्याशियों का भविष्य तय करेगा। कौन जीतेगा और कौन हारेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल तो सभी प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरकर मतदाताओं को रिझाने में लगे हुए है और प्रशासन शांतिपूर्वक संपन्न कराने की तैयारी में लगा हुआ है।