कटंगी। जब कटंगी में एक साथ बने दो विधायक
कटंगी। मध्य प्रदेश में इस बार 16वीं विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं 17 नवंबर को एक ही चरण में मतदान होगा। यहां विधानसभा क्षेत्र कटंगी-खैरलांजी में इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। जिनमें पांच पार्टी प्रत्याशी और पांच निर्दलीय उम्मीदवार हैं। आमतौर पर देखने में आता है कि हमेशा ही मुख्य मुकाबला राजनीतिक दलों के बीच होता आया है बावजूद इसके छोटे राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका भी चुनाव में बहुत अहम होती है। विधानसभा क्षेत्र कटंगी-खैरलांजी के परिदृश्य की बात करें तो यहां साल 1951 में पहली बार चुनाव हुआ। आजादी के बाद पहली बार चुनाव होने पर कटंगी से दो सीटों पर मतदान हुआ जिसमें एक सामान्य वर्ग और दूसरी अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट थी। उस वक्त 93305 मतदाता थे और शत प्रतिशत मतदान हुआ। 7 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे जिनमें राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार शंकर लाल तिवारी ने सामान्य और मोतीलाल ओड़क्या अनुसूचित जनजाति वर्ग की सीट से जीत हासिल की थी। इस चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी से जोदादास, अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ से ओमकार दास और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भीकम प्रसाद, फकीरा मते, रघुनाथ लटारू मैदान में थे।
साल 1957 में दूसरी बार विधानसभा के लिए चुनाव हुए और इस चुनाव में कटंगी की दो सीटों का दर्जा हटाकर एकमात्र सीट कर चुनाव करवाया गया और इसके साथ ही परिसीमन हुआ। जिससे एक अलग विधानसभा बनकर तैयार हो गई। चुनाव में 53888 मतदाताओं को मतदान करने का अवसर मिला था जिसमें 56 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का उपयोग किया इस चुनाव में चार प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे जिसमें रमणीकलाल अमृतलाल कांग्रेस से दौलतराम सकतु सोशलिस्ट पार्टी से और ओजीलाल पिता रामलाल तथा भाया पिता मगरिया निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतरे थे। कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी रमणीक लाल ने यहां विजयश्री प्राप्त की थी। साल 1962 में तीसरी विधानसभा के लिए चुनाव हुए और इस बार भी चार प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे लेकिन इस बार दो बार लगातार जीतने वाली कांग्रेस को हर का सामना करना पड़ा और निर्दलीय उम्मीदवार रामलाल ओझा ने चुनाव जीता। जिन्होंने कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी मेघराज बिसेन और एन.बी.गजभिए, लक्ष्मण धनसुईया को चुनावी शिकस्त दी। इस चुनाव में 54 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था।
साल 1967 में चौथी विधानसभा के लिए हुए विधानसभा चुनाव में कटंगी से 07 प्रत्याशी चुनावी रण में थे और इस बार 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था। चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार वी।पटेल ने चुनाव जीता और के।एच।जैन (आरपीआई), लोचन लाल ठाकरे (भारतीय जनसंघ), आर।के।कोचछ, ओ.आर. राहंगडाले, मंगलु, आर.उके, एन.उके निर्दलीय प्रत्याशी थे। 1972 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो फिर कांग्रेस प्रत्याशी चित्तौड़सिंह ने जीत हासिल की। इस बार लोचन लाल ठाकरे फिर जनसंघ से प्रत्याशी थे। जबकि 1967 के चुनाव में आरपीआई से चुनाव लडऩे वाले कचरूलाल जैन ने इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ा था। वहीं चिंतामन, भुवनलाल, भोण्डईसिंह, रघुनाथ और शोन्भा ने चुनाव लड़ा था। 1972 में 71 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था। 1972 को छोड़ दे तो सभी चुनाव में कांग्रेस पार्टी से ही विधायक बनते रहे लेकिन साल 1977 में होने वाला चुनाव में जनता पार्टी का खाता खुला और लगातार दो बार हार का सामना करने वाले लोचनलाल ठाकरे ने जीत हासिल की। यहीं से जनता पार्टी का कटंगी में उदय हुआ। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी भैयालाल परिहार, निर्दलीय प्रत्याशी भाउदास नागदेवे, होलचंद तुलाराम को हराया था। इस चुनाव में 64 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था।
इस बीच आपातकाल समाप्त हो चुका था और 1980 में ही चुनाव हुए देश में आपातकाल के घोर विरोध के बाद भी केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार बनी मगर, कटंगी में जनता पार्टी से विधायक बने लोचन लाल ठाकरे ने दूसरी बार फिर से चुनाव जीता। कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार छेदीलाल सहित नारायण गोविंद राम, सुखराम, श्रवण को चुनाव में शिकस्त मिली। इस चुनाव में 64 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था। साल 1985 में जब चुनाव हुए तो जनता दल से लगातार दो बार विधायक बनने वाले लोचन लाल ठाकरे को कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल हीरावत ने चुनाव हराया। इस बार चुनाव में सीपीआई ने एस।के।विश्वास को प्रत्याशी बनाया जबकि कचरूलाल जैन, सुदाम, नंदीराम, चंदुलाल, शाह जयंत बब्बो, लीलाधर जैसे प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में थे। वोट का प्रतिशत 69 से अधिक था। फिर जब 1990 में चुनाव हुए तो जनता पार्टी का नाम परिवर्तन होकर भारतीय जनता पार्टी हो चुका था और इस चुनाव में फिर एक बार लोचन लाल ठाकरे को विजयश्री मिली। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी शैलेंद्र चौकसे को चुनाव हराया था। इस चुनाव में कई नामचीन चेहरों के साथ कुल 14 प्रत्याशी मैदान में थे और 72 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था। साल 1990 के बाद 1993 में मतदान हुआ और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार टामलाल सहारे ने तीन बार के विधायक रहे लोचनलाल ठाकरे को करीब 10 हजार मतों से पछाड़कर जीत हासिल की इस चुनाव में 12 प्रत्याशी मैदान में थे और 75 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था। साल 1998 में हुए चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार टामलाल सहारे चुनाव जीते और लगातार दूसरी बार विधायक बने। उन्होंने मेष कुमार देशमुख को चुनाव हराया था। इस चुनाव में 09 प्रत्याशी थे जिनमें श्रीचंद मात्रे, मूलचंद परते, जी।पी।ठाकरे, बाडूलाल धमगाहे, राजेन्द्र सुराना, सुरेन्द्र सिंह देशमुख, चैतराम खोब्रागड़े शामिल थे। 2003 में राजनीति ने करवट ली और कांग्रेस को परास्त करने के लिए बीजेपी ने वारासिवनी से विधायक रह चुके के।डी।देशमुख को कटंगी से चुनाव मैदान में उतारा उन्होंने लगातार दो बार के विधायक रहे टामलाल सहारे की घर वापसी की। इस चुनाव में बीएसपी पार्टी प्रत्याशी उदयसिंह पंचेश्वर की भूमिका बेहद दिलचस्प रही। चुनाव में 08 प्रत्याशी मैदान में थे। जिनमें लखनलाल, सलमा खान, फिरोज खान, मूलचंद परते, मूलकराज आनंद शामिल थे। 81 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था।
साल 2008 में वारासिवनी से आए भाजपा विधायक के।डी।देशमुख को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने भी वहीं चाल चली और वारासिवनी विधानसभा के निवासी विश्वेश्वर भगत को कटंगी से चुनाव मैदान में उतारा। कांग्रेस का यह दाव सही साबित हुआ विश्वेश्वर भगत ने के।डी।देशमुख को करीब 2 हजार वोटों से चुनाव हराया। इस चुनाव में भी बसपा का अच्छा प्रदर्शन देखने को मिला। चुनाव में 12 प्रत्याशी मैदान में थे। 2008 में विधायक बनकर आए विश्वेश्वर भगत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए ऐसे में जब 2013 के चुनाव हुए तो जनता ने कांग्रेस विधायक विश्वेश्वर भगत के बेहद सुस्त कार्यकाल के चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया और फिर से एक बार क्षेत्र की कमान के.डी.देशमुख के हाथों में सौंपी चुनाव में 10 प्रत्याशी थे और बसपा अब विधानसभा कटंगी से दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभर चुकी थी लेकिन 2015 के चुनाव में फिर भाजपा को हार मिली और 15 साल तक अज्ञातवास में घर पर बैठे टामलाल सहारे को पार्टी ने टिकट दी और जनता ने उन्हें चुनाव जीताया। 2015 के चुनाव में कुल 19 प्रत्याशी चुनाव मैदान थे। बहरहाल, पहले विधानसभा चुनाव में शत प्रतिशत मतदान हुआ और अब 2023 के चुनाव में शत-प्रतिशत मतदान का लक्ष्य रखा गया है। आजादी के बाद से शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया यानी की इन 70 सालों में राजनीतिक परिदृश्य कई रूप ले चुका है। पहले राजनीति का धर्म हुआ करता था अब धर्म की राजनीति दिखती है। स्थानीय मुद्दों की राजनीति तो लगभग हवा हवाई दिखती है अप्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं से जाति, धर्म, लोभ-लालच और प्रलोभन देकर जनता से वोट मांगा जाता है। जनता से बड़े-बड़े दावे और वादे किए जाते है। 05 साल पता नहीं कैसे यूं ही बीत जाता है और फिर एक बार चुनाव आता है। इस बार फिर चुनाव है 17 नवंबर को मतदान होना है राजनीतिक दल जनता को लुभाने में जुटे हुए है। अब देखना है कि जनता किसे अपना नेता चुनती है।