बालाघाट। यह जिला कृषि प्रधान जिला है यहां के लोगों द्वारा सबसे अधिक कृषि कार्य किया जाता है जिसके चलते लोगों में पशुपालन को लेकर एक अलग ही उत्साह शुरू से ही देखने मिला है वही पशुपालन को रोजगार की दृष्टि से भी देखा जाता है जिसके चलते दुधारू एवं उपयोगी मवेशी का पालन किसानों द्वारा किया जाता है ताकि उसके माध्यम से जीविका अर्जन किया जा सके। आपको बताये कि बालाघाट जिले में दुग्ध का उत्पादन शुरू से ही काफी अच्छा रहा है। दुग्ध केंद्र में किसानों से प्राप्त दूध का अच्छा रेट दिया जाता था जिसके चलते किसानों द्वारा अपने दुग्ध का विक्रय दुग्ध केंद्र को किया जाता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से दुग्ध की आवक घट जाना बताया जा रहा है। प्रतिदिन दुग्ध केंद्र में पहले जितना दूध आता था उतना नहीं आ रहा है, इसके मूल कारणों का पता लगाने विभाग उतना गंभीर नजर नहीं आ रहा है। जो पॉलिसी दुग्ध संघ द्वारा चलाई जा रही है उसमें कुछ परिवर्तन कर दिया जाए तो दुग्ध की आवक में बढ़ोतरी की जा सकती है।
प्राइवेट एजेंसिया खरीद लेती है दूध
जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार लगभग 8 से 10 वर्ष पूर्व इसी दुग्ध केंद्र में 15000 लीटर दूध प्रतिदिन पहुंचता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से दुग्ध केंद्र में प्रतिदिन 7 से 8 हजार लीटर दूध ही पहुंच पाता है। दुग्ध की आवक क्यों कम हो गई इसकी जानकारी लिए तो पता चला कि प्राइवेट एजेंसिया भी दूध का क्रय करती है जिसके कारण बहुतायत दूध प्राइवेट एजेंसियों में ही डायरेक्ट चला जाता है, इसके कारण किसानों का दूध दुग्ध केंद्रों में नहीं पहुंचता।
121 समितियां है जिले में
जिले में बालाघाट दुग्ध केंद्र से जुड़ी हुई 121 समितियां है। पहले 111 दुग्ध समितियां ही थी लेकिन इसमें 10 समितियों की वृद्धि हुई है, वर्तमान में बालाघाट दुग्ध केंद्र से जुड़े 2200 सदस्य है जिनमें से 1648 किसान दूध देते हैं। बताया जा रहा है कि पहले दुग्ध केंद्र को बहुत तवज्जो दिया जाता था क्योंकि यहां से दूध पैकेट बनाए जाते थे इसके अलावा दुग्ध से संबंधित अन्य उत्पाद तैयार कर विक्रय किया जाता था लेकिन अभी सिर्फ दूध ही भिजवाया जाता है।
पहले वेटनरी विभाग चलाता था दुग्ध केंद्र को
जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार पहले वेटनरी विभाग द्वारा इस दुग्ध केंद्र को चलाया जाता था लेकिन वर्ष 1998 में शासकीय दुग्ध योजना आयी तबसे दुग्ध संघ द्वारा स्वयं दुग्ध संग्रहण किया जा रहा है। यह माना जा रहा था कि दुग्ध योजना आने के बाद दुग्ध संकलन में वृद्धि आएगी और आवक बढ़ेगी लेकिन इसका उल्टा ही नजर आ रहा है।
पॉलिसियों में किया जाना चाहिए परिवर्तन
बताया जा रहा है कि प्राइवेट एजेंसियो का एवं दुग्ध केंद्र का जो रेट है वह लगभग समान ही है अंतर सिर्फ इतना है कि प्राइवेट एजेंसिया 10 दिन में पेमेंट करती है व दुग्ध केंद्र द्वारा माह में एक बार पेमेंट किया जाता है। सबसे खास बात यह होती है कि प्राइवेट एजेंसियो के जो एजेंट रहते हैं उन्हें दुग्ध संग्रहण के लिए खरीदी पर कमीशन दिया जाता है जिसके चलते प्राइवेट एजेंसियों के एजेंट दुग्ध खरीदी के लिए ज्यादा मेहनत करते हैं, इसी कारण किसानों का दूध प्राइवेट एजेंसियों में ज्यादा जा रहा है। यदि दुग्ध संघ द्वारा पॉलिसियों में परिवर्तन कर दिया जाए रेट में कुछ बढ़ोतरी कर दी जाए, किसानों व समितियों को भुगतान व्यवस्था माह में दो बार कर दिया जाए तथा दुग्ध संग्रहणकर्ता से ज्यादा से ज्यादा दूध दुग्ध केंद्रों में पहुंचे इसके लिए समय-समय पर कुछ स्कीम भी चलाया जाना चाहिए ताकि दुग्ध केंद्र की ओर समितियां एवं दुग्ध उत्पादक किसान का झुकाव हो तभी यह दुग्ध केंद्र किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित होगा।
8000 लीटर प्रतिदिन है दूध की आवक - प्रबंधक
इसके संबंध में चर्चा करने पर दुग्ध केंद्र बालाघाट की प्रबंधक माधुरी सोनेकर ने बताया कि यह जरूर है कि कुछ वर्ष पहले जितना दुग्ध पहुंचता था उतना नहीं पहुंच रहा है है। अभी 8000 लीटर दूध प्रतिदिन दुग्ध केंद्र में पहुंच रहा है, जो भी शासन एवं जिला प्रशासन के निर्देश रहते हैं उनका पालन करते हुए संचालन किया जा रहा है।