नॉन टेक्निकल तरीके से किया गया निर्माण,
हरीश राहंगडाले बालाघाट। यह जिला विकास की श्रेणी में आगे बढऩे निरंतर अपने कदम आगे बढ़ा रहा है वही निर्माणकर्ता एजेंसियों द्वारा निर्माण कार्य की गुणवत्ता को और उसकी महत्ता को ध्यान में ना रखते हुए घटिया निर्माण कराकर जिले के विकास को पलीता लगाया जा रहा हैं। यह इसलिये कहा जा रहा है क्योंकि बालाघाट नगर में एस्ट्रोटर्फ मैदान की कितनी अहमियत है यह जिले की जनता, खेल प्रेमी व खिलाड़ी भलीभांति जानते हैं। इसके बावजूद भी एस्टोटर्फ मैदान के निर्माण को जो कि टेक्निकल रूप से जो भी बारीकिया है उसे ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है लेकिन इस मैदान को सही तरीके से नहीं बनाया गया यही कारण है कि बाहर से पहुंची जांच टीम द्वारा भी इस मैदान को नॉनटक्निकल बताया गया है और नया नक्शा भिजवाकर नए तरीके से बनाए जाने की बात कहीं गई है।
करोड़ों की लागत से हो रहा निर्माण
मुंसिपल स्कूल के पीछे चंद्रशेखर स्पोटिंग मैदान में एस्ट्रोटर्फ मैदान बनाया जा रहा है जो कि भविष्य को ध्यान में रखते हुए निर्माण करने के निर्देश दिए गए हैं। यह एक ऐसा मैदान होगा जो कई वर्षों तक जिले के खिलाडिय़ों को और खेल प्रेमी जनता को साथ देगा। एस्ट्रोटर्फ मैदान का निर्माण करोड़ों की लागत से किया जा रहा है जिस पर जनप्रतिनिधियों के साथ ही नेहरू स्पोर्टिंग क्लब के पदाधिकारियों द्वारा पूरा ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि नेहरू स्पोर्टिंग क्लब जिले के हाकी के खिलाडिय़ों को सामने लाने का मंच प्रदान करने का कार्य करता है साथ ही हॉकी के बड़े टूर्नामेंट भी आयोजित कराती है।
क्या नॉनटेक्निकल पवेलियन को बर्दाश्त करेगी जनता
जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार जो एस्टोटर्फ मैदान का निर्माण किया जा रहा है इसमें एक छोर पर पवेलियन तैयार कर लिया गया है, इस निर्माण कार्य में अभी तक करीब 40 से 50 लाख रुपया खर्चा हो जाना बताया जा रहा है। ऐसे में क्या वह निर्माण कार्य जिस तरह वर्तमान स्थिति में है वैसे ही रहेगा या फिर उसे तोड़कर नए तरीके से तकनीकी बारीकियों का ध्यान रखते हुए निर्माण किया जाएगा या फिर जैसा बन रहा है बनने दो कहते हुये जिले की जनता और खेलप्रेमी इस नॉन टेक्निकल पवेलियन को बर्दाश्त करेंगे। यह तो कुल मिलाकर नेहरू स्पोर्टिंग क्लब के पदाधिकारियों और हॉकी खिलाडिय़ों पर निर्भर करता है कि क्या वह ठेकेदार का सहयोग करते हुए निर्माण कार्य को रहने देते हैं या फिर इस पर आपत्ति दर्ज कराकर नॉनटेक्निकल पवेलियन को तुड़वाकर अच्छा पवेलियन और मैदान बनाने के लिए आवाज बुलंद किया जाता है यह तो आगामी समय ही बताएगा।
पवेलियन को यथावत रखने किया जा रहा प्रयास
सूत्रों से जो जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार एस्ट्रोटर्फ मैदान का निर्माण कार्य करने इसकी लागत लाखो की है। उसको देखते हुए निर्माण कार्य कर रहे ठेकेदार द्वारा यह निर्माण कार्य यथावत रहे और पवेलियन को तोडऩे की जरूरत ही न पड़े इसके लिए प्रयास करना शुरू कर दिया गया है। इससे लोगों का यही मानना है कि जब राजनीति करने वाले व्यापारियों को ही ठकेदार बना दिया जाएगा निर्माण कार्य के टेंडर दिए जाएंगे तो इस प्रकार की खामियां तो नजर आएगी ही। और अब यह खामी एस्ट्रोटर्फ मैदान जैसे बहुप्रतीक्षित खेल मैदान के लिए सामने आई है तो इस खामी को नजरअंदाज कराने एड़ी चोटी का जोर आजमाया जाएगा।
नेहरू स्पोर्टिंग क्लब के पदाधिकारी नए निर्देश का कर रहे इंतजार
बताया जा रहा है कि पिछले दिनों जब गलत तरीके से बनाए जा रहे एस्टोटर्फ मैदान की शिकायत खिलाडिय़ों द्वारा की गई थी, जिसकी जांच करने तकनीकी अधिकारी बाहर पहुंचे थे और उनके द्वारा खेल मैदान में हो रहे कार्यों का अवलोकन किया गया तथा पवेलियन के निर्माण कार्य की जांच की गई तो अधिकारियों द्वारा इसे नॉन टेक्निकल बताया गया था। उस दौरान अधिकारियों द्वारा नेहरू स्पोर्टिंग क्लब के पदाधिकारियों को कहा गया था कि उनके द्वारा जल्द ही इसका नया नक्शा तैयार कर उसके हिसाब से निर्माण कार्य करवाने निर्देशित किया जाएगा लेकिन वह निर्देश निर्माण एजेंसी के पास पहुंचे या नहीं तथा उसके हिसाब से कार्य शुरू करवाया गया है या नहीं इस बारे में जानकारी अभी तक नेहरू स्पोर्टिंग क्लब के पदाधिकारियों को स्पष्ट नहीं हो पाई है और पदाधिकारियों द्वारा इसका अभी भी इंतजार किया जा रहा है।
जब सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का
जिस तरह से बालाघाट जिले में निर्माण कार्य करवाए जा रहे हैं राजनीति करने वालों को ठेकेदारी करने का आर्डर दिया गया है, जिसके चलते सिर्फ एक एस्टोटर्फ मैदान ही नहीं जिले में हो रहे बहुत से निर्माण कार्य जिसमे तकनीकी ज्ञान बहुत ज्यादा आवश्यक होता है इसके बावजूद भी बहुत से कार्य ठेकेदारों द्वारा मिस्त्रियों के भरोसे करवाए जा रहे हैं। ठेकेदारों के पास उनके इंजीनियर भी नहीं होते हैं, निर्माण कार्य में खामी आ भी जाती है तो भी अधिकारी उस पर कुछ बोल नहीं पाते हैं। यही कारण है कि बालाघाट में एक कहावत चरितार्थ हो रही है सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का।