बालाघाट। रसिया से डॉक्टर का कोर्स करके लौटा गरीब युवक
बालाघाट। अभाव में रहकर जब कोई कामयाबी के शिखर पर पंहुचता है तो यकीनन वह मिशाल बन जाता है और कामयाब होने वाले के साथ उसके परिजन और गांव वालों की खुसी का ठिकाना सातवे आसमान पर होता है, बालाघाट से 7 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत नैतरा में एक गरीब परिवार का युवक दुर्गा लिल्हारे जब 6 वर्ष डॉक्टर की पढ़ाई करके अपने गृह ग्राम लौटा तो उसके परिजनों और ग्रामीणों के बीच कामयाबी का उत्साह और जश्न देखने को मिला।
नैतरा गांव के युवा ग्रामीणों ने रसिया से डॉक्टर की पढ़ाई करके मंगलवार को लौटे दुर्गा लिल्हारे का गोंदिया मार्ग नवेगांव चौक पर डीजे की धुन पर फूल माला से भव्य स्वागत किये और खास जीप बनाकर डीजे की धुन पर उसे गांव में घुमाते हुए उसके घर तक लेकर गए। 6 वर्ष डॉक्टर की पढ़ाई करके लौटे विदेश से आये होनहार बेटे को देखकर दुर्गा के माता पिता और परिजनों की आंखे खुशी से हंसती-खिलखिलाती दिखी तो कभी जिगर के टुकड़े को घर पर देख कर खुशी के आंसू से माता -पिता की आंखे नम भी होते दिखाई दी,एक गरीब मजदूर का लडक़ा भी अपनी मेहनत और लगन से बुलंदी पर पंहुच सकता है इस तरह की जनचर्चा इलाके में खूब हो रही है, दुर्गा लिल्हारे ने बताया कि उसने नैतरा सरकारी स्कूल में प्राथमिक और मिडिल की पढ़ाई, हाई स्कूल की पढ़ाई शासकीय स्कूल नावेंगाव में और फिर हायर सेकंडरी की शिक्षा शासकीय वीरांगना हायर सेकंडरी स्कूल से पूरी की थी 2017 में नीट की एक्जाम क्वालिफाइड करके माली हालत को देखते हुए 2018 को रसिया के कबरदीनो बाल्केरियन स्टेट यूनिवर्सिटी नालचिक में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए चले गए थे।
अभाव में कामयाबी का प्रभाव छोडऩे वाले दुर्गा लिल्हारे और उसके गरीब परिवार के लिए यह कामयाबी और भी खास हो जाती है दुर्गा का मानना है कि शिक्षा के जरिये कड़ी मेहनत और लगन आपको बुलंदी पर ले जाती है हमे अपने लक्ष्य पर ध्यान देकर खुद की काबलियत दिखानी है गरीबी या आर्थिक परेशानी मायने नही रखती आप यदि काबिल होते है तो मदद के लिए हाथ भी उठते है, दुर्गा की माने तो तंगहाली और महंगी होती स्वास्थ्य व्यवस्था में गरीबो की परेशानी को देखकर उनके मन मे डॉक्टर बनने का सपना देखा था अब एफएमजीई की एग्जाम के बाद आगे भविष्य में पैसा कमाने से ज्यादा गरीब जरूरत मंद लोगों की कैम्प लगाकर या सेवा करना ही ध्येय होगा।
डॉक्टर बनाने मजदूर पिता ने बेच दिया खेत
रसिया से एमबीबीएस की पढ़ाई करके लौटे दुर्गा के पिता कंसलाल लिल्हारे और उसका भाई मजदूरी का कार्य करते है जो थोड़ी खेती की जमीन थी उसमें से 75 डिसमिल खेत बेटे को कामयाब करने के लिए बेच दी थी। पढ़ाई और अन्य खर्च को उठाने जंहा परिवार ने जमा पूंजी के साथ खेत भी दांव पर लगा दिए थे नौबत कर्ज लेने की भी आई तो कर्ज भी उठाए, वंही रिस्तेदारो और दुर्गा के दोस्तो ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाते हुए दुर्गा का मनोबल बढ़ाते रहे।