बालाघाट। धान के बाद अब बांस की खेती करने करने किसान ले रहे रुचि
बालाघाट। जिले में किसान मुख्य रूप से धान की फसल का उत्पादन करते है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से किसान अतिरिक्त आय का बेहतर जरिया खोज रहे थे। जिन्हें हरा सोना कहे जाने वाले बांस की खेती अब लुभाते नजर आ रही है। मुख्य फसल धान के नुकसान को दूर करने बांस की खेती बेहतर अपनाई जा रही है। बैहर तहसील क्षेत्र में ऐसे कई किसान बांस की खेती से जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर रहे है जिससे उनकी हालत में सुधार आएगा। दरअसल, ग्राम कोरका, पौनी, बैहर, भारदा और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से लगे ग्राम बम्हनी समेत आधा दर्जन वनग्राम एवं राजस्व ग्राम है, जहां बांस की खेती की जा रही है। इतने गांवों में चालीस किसानों को बांस लगाने के लिए प्रेरित किया गया। जिन्होंने एक-एक एकड़ में चार-चार सौ पौधे लगाए।इन पौधों में गोबर की खाद देते रहते है और समय पर तालाब से सिंचाई करते है। जिसमें करीब ढाई लाख रुपये का खर्चा आया है। बांस के पौधे सितंबर 2020 में लगाए है जो दो साल के होने जा रहे है।तीन साल बाद एक बांस से पांच सौ से आठ सौ रुपये तक की आय मिलने लगेगी। वहीं वन विभाग की ओर से 120 रुपये प्रति बांस का अनुदान भी दिया जा रहा है।
किसानों ने बताया कि अच्छी प्रजाति वाले बांस के पौधे लगे होने की वजह से 10 से 15 फीट तक ऊंचाई तक हो गए है। इस बांस की प्रजाति को लगाने से अच्छी आमदानी प्राप्त होती है। एक बार पौधा लगाने पर तीन से चार बार फसल ली जा सकती है।यह बांस अच्छी प्रजाति का होने से इसका उपयोग फर्नीचर, कागज बनाने में किया जा सकेगा। बालकुआ बांस की बाजार में अधिक मांग रहती है जिससे किसानों को अन्य फसलों के मुकाबले मेहनत कम ज्यादा आमदानी मिलेगी। इसीलिए किसानों द्वारा बालकुआ प्रजाति का बांस लगाया है। किसानों का कहना कि तीन साल से इसका लाभ मिला शुरू हो जाएगा।
धान की फसल वन्यप्राणी कर देते थे चट
ग्राम बम्हनी के किसान मनोज मर्सकोले ने बताया कि खेत में कोई भी फसल लगाने पर वन्यप्राणी चट कर देते थे। इसके अलावा ओला और अतिवृष्टि से भी किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता था। जिससे परेशान होकर उसने सब्जी व धान की फसल का रकबा घटाकर जबलपुर की नर्सरी से बांस के पौधे मंगवाए है। सवा दो एकड़ में 1100 बालकुआ प्रजाति के बांस की खेती करना शुरू किया और ग्राम भारदा से बम्हनी के बीच पड़ने वाले नाले के किनारे बांस की खेती में सिंचाई करने के लिए एक छोटा तालाब भी बना लिया। अब इनसे प्रेरित होकर अन्य किसानों ने बालकुआ बांस की खेती अपनाई है।
इनका कहना है
बांस लगाने के लिए किसानों को अनुदान दिया जाता है। जिससे किसान बांस की खेती करने आगे आ रहे है। जिले में बांस से फर्नीचर के अलावा पानी की बोतले, कप सहित अन्य सामग्री बनाई जाती है।किसानों द्वारा बांस ऊगाने पर उन्हें विक्रय करने अब ज्यादा घूमना नहीं पड़ेगा। बांस से सामग्री बनाने वाले कारीगर जल्द ही बांस खरीद लेंगे।
एपीएस सेंगर, सीसीएफ बालाघाट