बालाघाट। बात अगर जिला मुख्यालय में स्थित विभिन्न उद्यानों की करें तो नगर के विभिन्न उद्यान कई वर्ष पूर्व ही दम तोड़ चुके हैं। जहां नगर में स्थित उद्यान नाम मात्र के उघान रह गए हैं। जहा ज्यादातर उद्यानों में फूल पौधे घास सहित उघान की अन्य व्यवस्थाएं नजर ही नहीं आती। तो वही नगर से सटे गर्रा स्थित बॉटनिकल वनस्पति उद्यान भी अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है। जिसका नाम भले ही वनस्पति उद्यान रखा गया हो लेकिन यह वनस्पति उद्यान अब सिर्फ नाम मात्र का वनस्पति उद्यान बनकर रह गया है। यह एकमात्र ऐसा वनस्पति उद्यान है जहां वनस्पति के एक भी पौधे नहीं है। तो वही पिछले समय लाखों रुपए खर्च कर लगाए गए वनस्पति पौधे ने भी देखरेख के अभाव में अपना दम तोड़ दिया है। अब इस उजड़े वनस्पति उद्यान को संजीवनी की तलाश है जहां एक बार फिर से बजट लाकर एक बार फिर से इस उद्यान को संवारने की योजना बनाई जा रही है। तो वही पूर्व में जो वनस्पति पौधे और औषधि युक्त पौधों का रोपण किया गया था वह पौधे या तो सूख गए हैं या फिर मवेशियों ने उन्हें अपना निवाला बना लिया है। जिस पर संबंधित विभाग या जिम्मेदार अधिकारियों का कोई ध्यान नहीं है। अब एक बार फिर से नया बजट लाकर इसे पुन: संवारने की बात विभाग द्वारा कही जा रही है। कुल मिलाकर कहा जाए तो भले ही यह वनस्पति उद्यान हो, लेकिन यहां वनस्पति पौधे नजर नहीं आ रहे हैं और जो पौधे लगाए गए थे उन्होंने अपना दम पूर्व में ही तोड़ दिया है। मतलब साफ है कि यह वनस्पति उद्यान महज नाम मात्र का वनस्पति उद्यान बनकर रह गया है।
तो वनस्पति पौधों के प्रति लोगों का कैसे बढ़ेगा प्रेम
बात अगर गर्रा स्थित वनस्पति उद्यान की करें तो वैज्ञानिक अनुसंधान, वनस्पति संरक्षण, वनस्पति संरक्षण, वनस्पती पौधों के प्रदर्शन और शिक्षा के उद्देश्य को लेकर दुर्लभ प्रजाति और औषधि युक्त पौधों का रोपण इस उद्यान में किया गया था। जहां वनस्पति पौधों के संरक्षण और उसके संवर्धन के लिए सुरक्षित जालियां लगाकर बड़े-बड़े गमले लगाए गए थे और उन गमलो में विभिन्न प्रजाति के वनस्पती पौधों का रोपण किया गया था। इसके अलावा एक बड़े एरिया में विभिन्न प्रकार के औषधि युक्त पौधे लगाए गए थे। जहां इस व्यवस्था को बनाने के लिए विभाग को बड़ा खर्च भी उठाना पड़ा था। लेकिन पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी यहां एक भी वनस्पति पौधा पनप नही सका और गमले में रखे रखे पौधे देखने के अभाव में सूख गए वहीं वनस्पति औषधि के जो पौधे लगाए गए थे उन पौधों को या तो मवेशियों ने अपना निवाला बना लिया या फिर वनस्पति पौधों के लिए पेयजल की व्यवस्था न होने और उसे पर उचित ध्यान न देने के चलते वे वनस्पती पौधे गमले में रखे रखे ही सूख गए और वनस्पति के संरक्षण संवर्धन और उसके प्रदर्शन के लिए सुरक्षित किया गए वनस्पति दुर्लभ औषधि पौधे पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं। जिस पर जिम्मेदारों का कोई ध्यान नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि जब वनस्पति गार्डन में ही वनस्पति पौधों की जानकारी लोगों को नहीं मिल पा रही है और वनस्पति पौधे और औषधि दुर्लभ प्रजाति के पौधे मानव जीवन के लिए क्यों जरूरी है जब इसका ज्ञान ही नहीं होगा तो फिर लोगों में वनस्पति के प्रति प्रेम कैसे बढ़ेगा? यह सवाल संबंधित विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है।
1986 से संचालित है गार्डन
बताया जा रहा है कि गर्रा स्थित बॉटनिकल गार्डन दक्षिण वन मंडल के अंतर्गत आता है जो लगभग 47 हेक्टेयर में फैला होने के साथ ही वैनगंगा नदी के किनारे मौजूद है और यह 1986 से संचालित है कभी यहां पर मोर की मीठी आवाज सुनने को मिला करती थी तो वही तेंदुए की आवाज से पूरा गार्डन सन्न रह जाता था। इतना ही नहीं चीतल, सांभर की उछल कूद भी पर्यटकों को बेहद भाती थी। बालाघाट का बॉटनिकल गार्डन कभी पर्यटकों की पहली पसंद हुआ करता था। यहां पर तेंदुए के अलावा सांभर, हिरण, चीतल सहित अन्य वन्य प्राणियों के दीदार आसानी से हो जाया करते थे। साथ ही वैनगंगा नदी के किनारे होने के कारण यहां का नजारा भी काफी सुंदर है लेकिन जब से यहां के वन्य प्राणियों को वन विहार भोपाल भेजा गया है तब से लोगो की आवाजाही कम हो गई है और अब यह उपेक्षाओं का शिकार हो गया हैज्वही यह अपनी पहचान मानो खोता जा रहा। यहां के हालात ऐसे है कि जो पिंजरे कभी वन्य प्राणियों के रखने के लिए उपयोग किए जाते थे वे अब देख रेख़ के अभाव में पूरी तरह से जर्जर हो चुके है। इस गार्डन में पहले हर दिन ही पर्यटकों का जमावड़ा हुआ करता था लेकिन अब यह गिने चुने लोग ही अपने परिवार के पिकनिक मनाने आते है साथ ही वे भी पहुंचते है जिन्हे एकांत में रहना पसंद है और वन्य प्राणियों के जाने के बाद से जितना ध्यान वन विभाग को देना है वो उतना नही दे पा रहा है जिसका खामियाजा ये हुआ को अब ये गार्डन अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।
बजट आया तो एक महीने में बदल जाएगा गार्डन का स्वरूप- जादौन
वन परिक्षेत्र अधिकारी वारासिवनी छत्रपाल सिंह जादौन ने बताया कि वनस्पति पौधों की सुरक्षा संरक्षण व संवर्धन के लिए अलग से एक क्षेत्र निर्धारित किया गया है। जहां विभिन्न प्रकार के वनस्पति पौधे गमले में लगाए गए थे लेकिन किन्हीं कारणों से उन वनस्पति पौधों को वहां से निकलकर सुरक्षा के नजरिए से गार्डन के अंदर ही अलग से सुरक्षित रखा गया है। क्योंकि आगामी समय में गार्डन का कायाकल्प होना है इसके लिए हमने डिमांड लेटर भेजे हैं यदि बजट आ जाता है तो वहां टूटे चूल्हे, पगौड़े, बैठक व्यवस्था, सौंदर्यीकरण सहित अन्य व्यवस्था बनाई जानी है उसका पुनर्निर्माण कराया जाएगा। पाइपलाइन भी जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो गई है पानी सप्लाई के लिए पाइपलाइन दुरुस्त की जाएगी। इसके अलावा अन्य सौंदरीकरण किया जाना है इसके लिए हमने डिमांड लेटर भेजा हुआ है लेकिन हमें अभी तक इसका बजट प्राप्त नहीं हुआ है। यदि 15 नवंबर तक हमें बजट मिल जाता है तो एक माह के भीतर 15 दिसंबर तक हम गार्डन का कायाकल्प कर देंगे उन्होंने बताया कि गर्रा गार्डन रहवासी क्षेत्र में है हमें फॉरेस्ट की रेवेन्यू भी देखना है। हमें गार्डन ऐसा बनाना है कि वहां परिवार के लोग भी ज्यादा से ज्यादा पहुंचे और उससे विभाग की इनकम भी बड़े। मवेशियों को गार्डन के भीतर घुसने नहीं दिया जाता। यदि मवेशी पाए जाएंगे तो संबंधित चौकीदारों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।