बालाघाट। पक्षियों की प्यास बुझाने घर के आंगन और पेड़ो में रखे जलपात्र:भारती सुरजीत ठाकुर...

बालाघाट। अप्रैल से ग्रीष्म ऋतु जैसी गर्मी का अहसास होने लगा है, आग उगलते सूरज के आगे इन दिनों सभी जीवधारी त्राहि-त्राहि कर उठे हैं। मनुष्य तो जैसे-तैसे अपने बचाव के साधन ढूंढकर राहत पा लेता है, लेकिन पशु-पक्षियों के सामने संकट की स्थिति पैदा हो जाती है। पानी की तलाश में वे मीलों का सफर तय कर रहे हैं। पक्षियों की सुरक्षा एवं उनके लिए दाना-पानी के लिए जन-जन में जागरूकता लाने के उद्देश्य से जल्द ही आर्ट ऑफ लिविंग संस्था और ग्रेसियस कॉलेज के संयुक्त प्रयास से शहर में घर की छत और पेड़ की शाखाओं पर मिट्ड़टी के सकोरे बांधकर नियमित पानी भरने का जिम्मा स्वप्रेरणा से लोगों को दिया जायेगा। ग्रीष्म ऋतु में पक्षियों के घरों और पेड़ो में पानी के सकोरे (जलपात्र) रखे जाने का आह्रवान भारती सुरजीतसिंह ठाकुर ने किया है।
धन-दौलत के बल पर व्यक्ति बाहरी सुख तो प्राप्त कर सकता है, लेकिन भीतर का सुख नहीं। आंतरिक सुख सेवा कार्यों से ही मिलेगा। जब भी पक्षी उस जलपात्र से जल पीयेगा तो उसको महसूस होने वाली वह शीतलता किसी न किसी रूप में आपको भी जरूर होगी। केवल समाज ही नहीं नगर के हर घर के बाहर पक्षियों के लिए एक ऐसा पात्र होना चाहिए। ऐसे संस्कार से आपके परिवार में भी संस्कार बनेंगे। जीवमात्र के लिए मानवता के लिए जो भी कार्य करोगे उसका सुख परिवार को भी मिलेगा और परोपकार के कार्य कभी भी बेकार नहीं जाते हैं। उन्होंने कहा कि नगरीय क्षेत्र में निवासरत लोगों के घरो और पेड़ो पर जल्द ही पक्षियों के लिए पानी डालने मिट्टी के सकोरे (जलपात्र) बांटे जायेंगे। इस गर्मी के मौसम में सभी को अपने-अपने घरों में पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था के लिए प्रयास करना होंगे और संकल्प लेना होगा, जीवमात्र की सेवा के लिए हम यह काम करेंगे।
उन्होंने नगरवासियों से आह्रवान किया कि गर्मी के मौसम प्रारंभ होते ही पशु, पक्षियों को पानी की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है और यदि हम जलपात्र में उनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था करते है तो हमें एक आत्मिक सुख का अनुभव होता है, यही नहीं बल्कि जलपात्र के पानी में यदि थोड़ा गुड़ भी मिला दिया जाए तो पक्षियों के शरीर में इलेक्ट्रोलाइट की मात्रा संतुलित रहती है। हमारा थोड़ा सा प्रयास घरों के ऊपर उडऩे वाले पक्षियों की भूख-प्यास बुझाकर उनकी जिंदगी बचा सकता है। ऐसा करने वाले व्यक्ति को सच्चे आनंद की अनूभूति होगी। शहर के साथ ही गांव के लोग भी स्वप्रेरित रूप से इस कार्य में यदि जुड़ते है तो निश्चित ही पशु, पक्षियों को दाना-पानी के लिए भटकने की जरूरत नही होगी।
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